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धैर्य और प्रतीक्षा

                  धैर्य और प्रतीक्षा


जब दुविधा में घिरे हृदय,
प्रश्नों की लड़ी हो परंतु एक भी उत्तर न मिलता हो।
जब प्रतिपल भाव बदल रहे हों हृदय के,
जब भावनाएं विचलित करती हों,
जब चिंताएं शिथिल करती हों,
जब अपने ही निर्णयों पर शंका होने लगे,
अंजान दोराहे पर खड़े होने की अनुभूति होने लगे,
अंजाने ही लोगों को आपसे सहानुभूति होने लगे,
जब सहस्त्रों प्रयासों के पश्चात भी
किसी एक निर्णय पर न पहुंच पाएं,
उस क्षण रखना होगा धैर्य एवं करनी होगी प्रतीक्षा
समय के चढ़ाए हुए धुंध के छट जाने की,
कभी कभी जीवन में धैर्य के साथ की गई प्रतीक्षा,
हमको वह दे सकती है जो हमने उम्मीद भी न की होगी,
काल चक्र सभी प्रश्नों के उत्तर स्वयं देता है,
ईश्वर पर विश्वास रखिए,
इस वृम्हाण्ड पर विश्वास रखिए।

                                           आलोक की कलम से

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